प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि विवाहित पुत्री को केवल विवाहिता होने के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि विवाहिता होना नियुक्ति में बाधा नहीं है और शिक्षा विभाग को इस पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता एवं न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की खंडपीठ ने देवरिया निवासी चंदा देवी की विशेष अपील पर पारित किया।
चंदा देवी के पिता संपूर्णानंद पांडेय प्राथमिक विद्यालय गजहड़वा, ब्लॉक बनकटा, तहसील भाटपाररानी, देवरिया में सहायक अध्यापक पद पर कार्यरत थे। वर्ष 2014 में सेवा के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद चंदा देवी ने अनुकंपा कोटे में नियुक्ति हेतु आवेदन किया।
दिसंबर 2016 में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, देवरिया ने उसका आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह विवाहित बेटी है, और शासनादेश (04 सितंबर 2000) के अनुसार पात्र नहीं है।
उन्होंने इस आदेश को चुनौती दी। एकल पीठ ने माना कि विवाहित पुत्री भी पात्र है, किन्तु याची यह साबित नहीं कर पाई कि उसके पति बेरोजगार हैं तथा वह पिता पर आश्रित थी। साथ ही यह भी कहा गया कि पिता की मृत्यु को 11 वर्ष बीत चुके हैं, अतः दावा अब विचार योग्य नहीं है।
इसके विरुद्ध विशेष अपील पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने कहा कि—
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने आवेदन को केवल विवाहित बेटी होने के आधार पर खारिज किया,
निर्भरता के पहलू पर कोई विचार नहीं किया गया।
खंडपीठ ने स्मृति विमला श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले का हवाला देते हुए कहा कि विवाहित बेटी होना नियुक्ति में बाधा नहीं है। साथ ही यह भी कहा गया कि चंदा देवी ने आदेश खारिज होने के तुरंत बाद ही याचिका दाखिल की थी, इसलिए देरी का आधार भी टिकाऊ नहीं है।
कोर्ट ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, देवरिया को आदेश दिया है कि आठ सप्ताह के भीतर चंदा देवी के दावे पर पुनर्विचार कर निर्णय लें।
✍️ दीपक कुमार पाण्डेय एडवोकेट ( High Court Judicature at Allahabad)


