(प्रबुद्ध भारत न्यूज़ नेटवर्क की विशेष श्रृंखला – “गाजीपुर की अनोखी शख्सियतें”)
जब पूरी दुनिया किसी को छोड़ देती है, तब अगर कोई साथ खड़ा होता है — तो वो ईश्वर का ही कोई अंश होता है।
गाजीपुर जनपद के कासिमाबाद तहसील क्षेत्र के मोहम्मदाबाद उसरी गाँव में जन्मे कृष्णानंद उपाध्याय, पुत्र स्व. काशीनाथ उपाध्याय, आज उन्हीं विरले व्यक्तित्वों में गिने जाते हैं जिन्होंने उस मानवता की रक्षा की है, जो शवों के साथ भी नहीं मरी।
✍️ शिक्षा से सेवा तक की यात्रा
स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त कर लेने के बाद, जब लोग सरकारी नौकरी या कारोबार में व्यस्त हो जाते हैं, तब कृष्णानंद उपाध्याय ने सेवा का ऐसा पथ चुना, जिस पर कांटे ही कांटे थे, पर आत्मा की संतुष्टि अपार।
उन्होंने लावारिस शवों का निः शुल्क अंतिम संस्कार करना निः शुल्क शव वाहन सेवा संचालित करना न केवल शुरू किया, बल्कि उसे एक सामाजिक मिशन का रूप दे दिया।
🔥 जब दुनिया मुँह मोड़े, तब हाथ बढ़ाया…
रेलवे स्टेशनों, सड़कों, घाटों और अस्पतालों से जब कोई लावारिस शव उठाने को तैयार न था, तब कृष्णानंद उपाध्याय ने बिना भेदभाव, बिना भय के उन शवों को वैदिक मर्यादाओं के साथ अग्नि दी।
उनके इस साहसी कार्य में कई सहयोगी समय-समय पर जुड़े, कुछ परिस्थिति से छूटे, पर उनका मिशन कभी नहीं रुका।
🙏 केवल संस्कार नहीं, बल्कि सम्मान भी…
कृष्णानंद उपाध्याय ने पिछले 13 वर्षों में अब तक 1000 से अधिक लावारिस शवों का दाह संस्कार बिना किसी सरकारी दान अनुदान प्राप्त किये किया है।
हर साल वे पिंडदान, त्रिपिंडी श्राद्ध, गरुणपुराण पाठ, भंडारा एवं कंबल वितरण जैसे आयोजन करते हैं।
इसके अलावा जीवित लावारिस व्यक्तियों का देख रेख भोजन कपड़ा दवा दूध देने कार्य करते है।
यह न केवल एक सामाजिक कार्य है, यह मृत आत्माओं को सम्मानित विदाई देने की एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है।
🛡️ प्रशासनिक और सामाजिक पहचान
उनकी पहचान अब किसी प्रचार की मोहताज नहीं है।
बिहार के पूर्व DGP गुप्तेश्वर पांडे जैसे अधिकारी उन्हें अपने छोटे भाई जैसा स्नेह देते हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक उनके कार्यों की जानकारी पहुँच चुकी है।
20 से अधिक आईपीएस अधिकारी, अनगिनत निरीक्षक, थाना प्रभारी, सिपाही उनके निः स्वार्थ सेवा कार्य से संपर्क में हैं — क्योंकि वो वर्दी वालों के लिए भी एक भरोसेमंद सहयोगी बन चुके हैं।
👨👩👦👦 परिवार बना शक्ति, बाधा नहीं
आज जब समाजसेवा को अक्सर परिवार से टकराव का कारण माना जाता है, वहाँ कृष्णानंद उपाध्याय का परिवार उनके लिए संबल बना।
बड़े भाई सुरेश उपाध्याय (सेना पुलिस से सेवानिवृत्त) और भतीजे कौशल कुमार उपाध्याय (सेना में सूबेदार) भी इस मिशन में कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़े हैं।
उनकी पत्नी और बच्चे, सीमित साधनों में भी अपने जीवन को ढालकर, हमेशा उनका मनोबल बढ़ाते हैं, न कि बाँधते हैं।
🕉️ आस्था, कर्म और आत्मा की पुकार
कृष्णानंद उपाध्याय का जीवन वैदिक सनातन परंपराओं से गहराई से जुड़ा है।
वे मृत्यु को अंत नहीं, आत्मा की यात्रा का एक पड़ाव मानते हैं।
वे विघ्नबाधा निवारण, संस्कार, तर्पण जैसे धार्मिक कृत्यों में न केवल संलग्न हैं, बल्कि उन्हें समाज के लिए आवश्यक संतुलन मानते हैं।
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✨ एक पुरुषार्थ जो पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है
> जब कोई साथ नहीं होता, तब कृष्णानंद उपाध्याय होते हैं।
जब कोई अर्थी उठाने वाला नहीं मिलता, तब उनका कंधा आगे आता है।
जब पूरा देश कोरोना के महामारी से जूझ रहा था जिस समय परिवार के सदस्य भी अपनों से दूर भागते थे उस दौरान अस्पताल में भर्ती मरीजो की सेवा हजारों राहगीर कोरंटाइन लोगो को भोजन पानी वितरण करते थे।
जब कोई नाम लेने वाला नहीं होता, तब वे नाम की जगह “मानवता” लिखते हैं।
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🔥 सच्चे कर्मयोगी को समर्पित कुछ शब्द —
🕯️ “जहाँ लोग अपने तक सीमित हैं, वहाँ कृष्णानंद उपाध्याय सबके लिए समर्पित हैं।”
🌿 “जो अंतिम संस्कार तक को सेवा मानें, वही सच्चे समाजसेवक कहलाते हैं।”
📿 “वो कोई सामान्य व्यक्ति नहीं, वो उन आत्माओं का तारणहार है जिन्हें जीते जी अपनाया नहीं गया।”
🚩 “कब्र या चिता नहीं देखता वो — बस ये देखता है कि कहीं कोई आत्मा अकेली तो नहीं रह गई।”
🕊️ “नाम नहीं, काम बोलता है — और कृष्णानंद उपाध्याय का काम आत्माओं की भाषा में लिखा गया है।”
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🙏 प्रबुद्ध भारत न्यूज़ नेटवर्क इस माटीपुत्र को नमन करता है।
📌 यह विशेष प्रस्तुति “गाजीपुर की अनोखी शख्सियतें” श्रृंखला की एक श्रद्धांजलि है — उन्हें, जो समाज का आइना हैं, पर खुद कभी उसमें दिखाई नहीं देते।
“हम आवाज़ हैं उन चेहरों की, जो सुर्ख़ियों में नहीं मगर इंसानियत में सबसे आगे हैं।”
🖋️ — प्रबुद्ध भारत न्यूज़ नेटवर्क
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