गाजीपुर
गाजीपुर। करण्डा थाना पुलिस की लापरवाही और संवेदनहीनता एक बार फिर बेनकाब हुई है। जमीन विवाद में पूरे परिवार पर जानलेवा हमला हुआ, 4 लोग लहूलुहान हालत में जिला अस्पताल पहुंचे, दरखास्त देने के बावजूद करण्डा पुलिस ने एफआईआर तक दर्ज नहीं की। आखिरकार पीड़ित को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। अदालत के आदेश पर अब जाकर 23 नामजद आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ।

21 जून को हुआ था हमला-
प्रार्थी वशिष्ठ नारायण राम का आरोप है कि गांव के रामाधार, रामा राम, गामा राम समेत 23 लोग लाठी-डंडा, फावड़ा और धारदार हथियार लेकर उनके घर पर चढ़ आए। आरोपियों ने जातिसूचक गालियां देते हुए वशिष्ठ, उनकी पत्नी सुमित्रा, पुत्र अंकित और भाई राजनारायण को बुरी तरह पीटा। सिर फटने और हाथ-पांव की हड्डियां टूटने तक की नौबत आ गई।
पुलिस ने नहीं की कार्रवाई-
घटना के बाद 100 नंबर पर फोन करके एम्बुलेंस से घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया। वहीं 22 जून को ही अस्पताल से थाना करण्डा को दरखास्त भेजी गई, लेकिन पुलिस ने न तो एफआईआर दर्ज की, न ही मेडिकल परीक्षण कराया। यहां तक कि 23 जून को जब पीड़ित खुद थाना पहुंचा, तब भी पुलिस ने दरखास्त को रद्दी की टोकरी में डाल दिया।
अदालत से मिली राहत-
लगातार पुलिस की उदासीनता से त्रस्त पीड़ित को अदालत की शरण लेनी पड़ी। अदालत ने पीड़ित के मेडिकल व चोटों को गंभीर मानते हुए करण्डा पुलिस को आदेशित किया कि आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर विवेचना की जाए।
सवालों के घेरे में करण्डा पुलिस-
चर्चा है कि पुलिस ने दबाव में आकर आरोपियों को बचाने की कोशिश की। सवाल यह भी उठ रहा है कि जब चार लोग गंभीर हालत में अस्पताल भर्ती हुए, तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने और मेडिकल कराने में ढिलाई क्यों बरती?

